बालक येसु के आदर में नौरोजी प्रार्थना
क्रिसमस की आध्यात्मिक तैयारियों में बालक येसु के आदर एवं भक्ति में की जाने वाली प्रार्थनाओं का बहुत बड़ा स्थान है। इन प्रार्थनाओं और मनन-चिंतन में सारा जोर इस बात पर होता है कि येसु ने विनम्रता का अद्भुत उदाहरण पेश करते हुए मानव शरीर में इस संसार में आए और चरनी में जन्म लिया। यह हमारे लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि सांसारिक वैभव ही सब कुछ नहीं है बल्कि इस वैभव से भी बढ़कर ईश्वर की करुणा और दया है और जिसके पास ईश्वर की करुणा और दया है वो ही इस संसार में सबसे धनी है।
बालक येसु के आदर में नोवेना प्रार्थना प्रति वर्ष 16 दिसंबर से शुरू करके 24 दिसंबर तक की जाती है। यह प्रार्थना हमें यह याद दिलाती है कि येसु क्यों इस संसार में आये थे और उन्होंने हमें क्या अनुपम उपहार दिया है।
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बालक येसु के आदर में नोवेना प्रार्थना
क्रूस का चिन्ह - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर, आमेन।
हे पिता हमारे..., प्रणाम मरिया..., प्रेरितों का धर्मसार..., पवित्र त्रित्व की महिमा...
पहला दिन: विनम्रता
येसु का जन्म - “और उसने अपने पहलौठे पुत्र को जन्म दिया और उसे कपड़ों में लपेटकर चरनी में लिटा दिया, क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी, - लूकस: 2.7”
“आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था। - योहन 1ः1”
मनन-चिन्तन: शब्द ने शरीर धारण किया और हमारे बीच रहा। शरीर धारी ईश्वर ने हमारे ही समान मनुष्य के रूप में जन्म लिया। उनको भी मानव जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ा - बालकपन, किशोरावस्था, युवावस्था और प्रौढ़ावस्था। किसी भी मनुष्य की तरह वे भी एक मनुष्य थे। उन्होंने भी पीड़ा, गर्मी, भूख-प्यास, थकान आदि का अनुभव किया और अनुकम्पा, दया, प्रेम, व्यथा और दर्द का भी अनुभव किया। खुद शरीर धारण ही उनकी विनम्रता का प्रमाण है। पूर्ण विनम्रता ही के कारण वे मनुष्य बने, गौशाले में जन्में, शीतकाल की रात्रि की कड़ाके की ठण्ड का उन्होंने सामना किया। विश्व के सृष्टिकर्त्ता को जन्म लेने के लिए खाली कमरा तक नसीब नहीं हुआ।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! गौशाले की तंगी को समझने की कृपा हमें प्रदान कर। तेरे अज्ञात और अनदेखे जन्म के द्वारा हमें वह कृपा प्रदान कर जिससे हम साहस और दृढ़ता के साथ कठिनाइयों का सामना कर सकें और यह समझ सकें कि तू सम्पन्नों की तरह प्रताप के साथ नहीं पर गरीबी और विनम्रता लेकर मनुष्यों के बीच आया।
हे पिता हमारे..., प्रणाम मरिया..., पवित्र त्रित्व की महिमा...
दूसरा दिन: आराधना
ज्योतिषियों की आराधना: “घर मे प्रवेश कर उन्होंने बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा और उसे साष्टाँग प्रणाम किया। फिर अपना-अपना सन्दूक खोलकर उन्होंने उसे सोना, लोबान और गँधरस की भेंट चढ़ायी। - मत्ती 2ः11”
मनन-चिंतन: मत्ती रचित सुसमाचार के अनुसार तीन ज्योतिषी नवजात राजा ख्रीस्त की आराधना के लिए सुदूर पूर्व से आये थे। एक तारे के द्वारा उनकी अगवानी की गयी थी। यह यात्रा किसी भी तरह से सुनियोजित नहीं थी। हरेक को अपने-अपने दि लमे ंलगा कि वे नवजात शिशु को अपने ही ढंग से आराधना करें। गन्तव्य स्थान पहुंचने पर उन्होंने नवजात शिशु की साष्टाँग आराधना की। प्रत्येक ज्योतिषी अपनी ही इच्छानुसार नवजात राजा के लिए दक्षिणा - सोना, लोबान और गंधरस - साथ लेकर आये हुए थे। ये दान प्रतीकात्मक और सार्थक थे। सोना और लोबान ख्रीस्त के राजत्व का, लोबान उनकी ईश्वरता का और गंधरस उनकी पीड़ादायक मृत्यु का प्रतीक है। इससे प्रतीत होता है कि ज्योतिषी सिर्फ बेथलेहेम के ही बालक की आराधना करने के लिए आये हुए थे।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! हम तुझसे निवेदन करते हैं कि हमें भी ज्योतिषियों की, - जो सर्वोच्च प्रभु की आराधना करने के लिए प्रेरित हुए थे, - अनुकरण करने में हमारी सहायता कर। हमें यह समझने की शक्ति और कृपा प्रदान कर कि हमारी राह तेरी जैसी नहीं है, जो हमारी समझ में बुद्धिमानी और जरूरी है वो तेरी दृष्टि में मूर्खता और हमारी आत्मा के लिए खतरा है। हमारी अन्तरात्मा की आंखें खोल दे कि हम विश्वासपूर्वक पवित्र परमप्रसाद में भक्ति और सच्चे दिल से तेरी आराधना करें।
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तीसरा दिन: आज्ञापालन
नाज़रेत में बालक येसु: “ईसा उनके साथ नाज़रेथ गये और उनके अधीन रहे। लूका 2ः51”
मनन-चिन्तन: येसु के तीस वर्षों तक का नाज़रेत का जीवन इन थोड़े शब्दों में कहा जा सकता है - “वह उनके अधीन रहे।” तीस वर्षों तक उसने इस दुनिया के माता-पिता की आज्ञाकारिता में बिताया। ईश्वर होते हुए भी उसने अन्य बच्चों की तरह मानुषिक माता-पिता की आज्ञाओं का पालन किया। उसने अपने पालक पिता जोसेफ की मदद की। उसने लकड़ी ढोयी और कार्य-स्थल की सफाई की। पहाड़ी प्रदेश में पानी की समस्या थी। उसने माँ के लिए दूर से पानी ढोया। इस आज्ञाकारिता के द्वारा उसने अपने आप को तीस वर्षों के सार्वजनिक जीवन के लिए तैयार किया और इस तरह परमपिता ईश्वर की उस कठिन आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हुए जहां उनको दो डाकुओं के बीच क्रूस पर मरना पड़ा।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! शरीर धारण से पुनरुत्थान तक तूने अपने परम पिता की आज्ञा का पालन किया। मरियम और जोसेफ जैसे निरे मनुष्यों की आज्ञाओं का पालन कर तूने दुनिया को शिक्षा दी है कि हमें माता-पिता और अधिकारियों की आज्ञाओं का पालन करना कितना आवश्यक है। हमें कृपा प्रदान कर कि हम भी अपने दैनिक कार्यों को पूरे आत्मसमर्पण के साथ, सावधानी से, ईमानदारी से विरोधों को स्वीकार करते हुए आनन्द के साथ ख्रीस्तीय भावनाओं के साथ निभा सकें।
हे पिता हमारे..., प्रणाम मरिया..., पवित्र त्रित्व की महिमा...
चौथा दिन: प्रज्ञा
मन्दिर में येसु: “और ऐसा हुआ कि तीन दिनों के बाद उन्होंने ईसा को मंदिर में शास्त्रियों के बीच बैठे, उनकी बातें सुनते और उनसे प्रश्न करते पाया। सभी सुनने वाले उसकी बुद्धि और उनके उत्तरों पर चकित रह जाते थे। लूका 2ः46-47”
मनन चिन्तन: बारह वर्षों की उम्र में येसु त्योहार के लिए येरुसालेम मंदिर गये और अपने माता-पिता से बिछुड़ गये। मरियम और जोसेफ दुःख के सागर में डूबे तीन दिनों तक उसकी खोज करते रहे और अन्त में उसे मन्दिर के अधिकारियों के बीच उनसे ईश्वर सम्बंधी सच्चाइयों और धर्म के विषय में वाद-विवाद करते पाकर वे विस्मित हो गये। ख्रीस्त ने शास्त्रियों और पंडितों के समक्ष अपनी ईश्वरीय प्रज्ञा का परिचय दिया। ये धर्म-पंडित और धर्माधिकारी घमण्ड और अहंकार रुपी अंधकार में टटोल रहे थे। वहाँ उपस्थित सब लोग उसके ईश्वर संबंधी धार्मिक ज्ञान और जीवन के अनुभव देखकर विस्मित हो गये और खुले आम यह प्रश्न करने लगे - क्या यह वास्तव में बढ़ई जोसेफ का बेटा है? ज्ञान में दूसरों से बढ़कर होने पर भी किसी ने उनके शब्दों और आचरण में अहंकार नहीं देखा। सभी ने उनमें ईश्वर-ज्ञान और विवेक का अनुभव किया।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! अपने ज्ञान के लिए घमण्ड और अहंकार से हमें बचा। तू ही हमारे ज्ञान का स्रोत है। हमें ऐसा वर दे कि हम तुझे ईश-मंदिर में, पवित्र यूखरिस्त में, शिक्षकों के बीच और कलीसिया के नियमों में पा सकें। तेरे साथ और तेरे ही द्वारा जीने का आनन्द का अनुभव हमें प्रदान कर ताकि हम अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ सकें। आमेन।
हे पिता हमारे..., प्रणाम मरिया..., पवित्र त्रित्व की महिमा...
पांचवाँ दिन: एकता
राजकीय आराधना: “हे पावन पिता, वे हमारी ही तरह एक रहें। योहन 17ः11”
“जितना अधिक मेरा सम्मान करोगे उतना ही अधिक मैं तुम्हें आशीर्वाद दूंगा। - फा. सिरिल को दिव्य दर्शन”
मनन - चिन्तन: ज्योतिषियों ने येसु को सम्मानित किया। बारह वर्ष की आयु में पंिडत और ज्ञानी येरूसालेम मंदिर में उनकी बुद्धि और विवेक पर विस्मित हुए। उनके सार्वजनिक जीवन काल में निकोदीम और यहूदियों के शासकों ने उसे ईश्वर से आया हुआ स्वीकार किया। आज तक उच्चाधिकारियों द्वारा येसु का आदर और सम्मान किया जा रहा है। प्राग के बालक येसु की भक्ति और सम्मान सन् 1628 ई॰ से ही चली आ रही है। बालक येसु की मूलभूत प्रतिमा स्पेन की राजकुमारी मनरीक दी लारा की राजकीय परिवार की मूर्ति थी। बालक येसु की इस प्रतिष्ठित प्रतिमा की आराधना यूरोप के राजा महाराजाओं और महारानियों के द्वारा की जाती थी। यह प्रतिमा राजाओं के बीच, विशेषकर लड़ाई के समय, एकता का स्रोत रही। विभिन्न यूरोपीय देशों ने बालक येसु की छत्रछाया में एकता का संगठन बनाया।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! एकता तेरे हृदय को अति प्रिय रही है। तूने पिता से इस वरदान के लिए प्रार्थना की और इसके लिए काम भी किया। हमारे विचार, वचन और कार्य में एकता और एकरूपता प्रदान कर। जो लोग यंत्रणाओं और विभिन्न कठिनाईयों की वजह से तुझसे अलग हो गए हैं, ऐसी कृपा प्रदान कर कि वे अपनी गलती महसूस कर तेरी एकता में तेरे पास लौट आएं। हम सब जो तेरी भेड़ हैं तेरी ही, एकमात्र चरवाहे की छत्रछाया में एकता के सूत्र में बंधे रहें। आमेन।
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छठवाँ दिन: प्रेम
प्रेम का संदेश: “मैं तुम लोगों को एक नई आज्ञा देता हूँ - तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैंने तुम लोगों को प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो। योहन-13ः34”
“जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहीं तुम्हारा हृदय होगा। लूकस-12ः34”
मनन-चिन्तन: सन् 1628 ई॰ में, स्पेन की राजकुमारी मनरीक दी लारा ने विवाह के अवसर पर अपनी बेटी पोलिक्सेना को अपने प्यार और यादगारी के तौर पर बहुमूल्य पारिवारिक सम्पति बालक येसु की चमत्कारिक प्रतिमा प्रदान की जबकि परम्परा के अनुसार उन्हें राजमहल, सोना, चांदी आदि उस अवसर पर दिए जाने चाहिए थे। पोलिक्सेना ने सप्रेम और अपार भक्ति के साथ चमत्कारिक बालक येसु की प्रतिमा को स्वीकार किया और अपने नए निवास स्थान, बोहेमिया जो आजकल चेकोस्लोवाकिया कहलाता है, ले गयी। वहाँ उसने अपनी माँ का अनुपम प्रेमोपहार उस प्रतिमा को संजोये रखा। वही प्रतिमा राजकुमारी के निराशा के समय सान्त्वना और आशा का स्रोत थी। इसी प्रतिमा के द्वारा राजकुमारी पोलिक्सेना के मन और दिल में ईश्वर और मनुष्य के प्रति प्रेम पनपा और दृढ़ हुआ।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! तू ही हमारा सर्वस्व है, उत्तम धन है और तू सदैव हमारे हृदय में ही वास करता है। हमारे हृदयों में पड़ोसी प्रेम एवं एक दूसरों के लिए चिन्ता करने की उत्कंठा जागृत कर। हमारे अन्तःतम में प्रेम करने की शक्ति पूर्णतः विकसित कर जिससे हम नई सृष्टि के स्त्री और पुरुष बन जाएं। ऐसा कर कि वह प्रेम निराशाजनक परिस्थितियों में आशा और साहस प्रदान करे। आमेन।
हे पिता हमारे..., प्रणाम मरिया..., पवित्र त्रित्व की महिमा...
सातवाँ दिन: प्रार्थना
विश्वास द्वारा कृपा: “क्योंकि यदि आपलोग मुख से स्वीकार करते हैं कि येसु प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो आप को मुक्ति प्राप्त होगी। रोमियों-10ः9”
“इस प्रतिमा द्वारा मैं तुम्हें दुनिया की अपनी सबसे बहुमूल्य निधि दान करती हूँ। बालक येसु का आदर और सम्मान करो और तुम्हें किसी चीज़ की घटी नहीं होगी। - राजकुमारी पोलिक्सेना”
“दुनिया जितनी कल्पना करती है उससे अधिक कृपा प्रार्थना द्वारा प्राप्त होती है। - टेनिसन”
मनन-चिन्तत: लड़ाई के समय प्राग में स्थित कार्मेल के मठवासी अत्यन्त ही गरीब हो गए थे। राजा के अनुदान के बिना उनके लिए जीना दूभर हो गया था। राजा उन दिनों लड़ाई में अत्यधिक खर्च कर रहे थे। राजकुमारी पोलिक्सेना ने इसी आशा और विश्वास से, कि बालक येसु ही मठवासियों को उनकी गरीबी से बचा सकता है, उस प्रतिमा को उनके सुपुर्द कर दिया। उसने वह प्रतिमा उन्हें देते हुए अनुरोध किया कि वे बालक सेसु की अराधना करें, उसका समादर करें और उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होगी।
उनके कथनानुसार मठवासियों ने बालक येसु की प्रतिमा के चरणों पर घुटने टेककर गिड़गिड़ाकर प्रार्थनाएं की। जैसे ही वे उनका विश्वास, आदर-सम्मान और भक्ति करने लगे, बालक येसु की आशिष के फलस्वरूप मठ की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, मठ फलने-फूलने लगा। इस तरह उस मठ में मठवासियों के लिए बालक येसु की वह प्रतिमा वरदान और कृपा का स्रोत बनी।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! तूने अपने सार्वजनिक जीवनकाल में बहुत बार प्रार्थना की। प्रार्थना ईश्वर के लिए हमारा हृदय द्वार खोल देती है। प्रार्थना ही हमारी आत्माओं का भोजन है जो हमें अनन्त शान्ति प्रदान करता है। हम तुझसे निवेदन करते हैं - हमें प्रार्थना करना सिखला और उसमें अटल विश्वास प्रदान कर ताकि सुख और दुःख में, जीवन की हर कठिनाइयों में भी हमें प्रार्थना की तीव्र इच्छा प्रदान कर। आमेन।
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आठवाँ दिन: अनुकम्पा
बीमारों को स्वास्थ्य लाभ: “परन्तु वह हमारे ही रोगों का अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुःखों से लदा हुआ था और हम उसे दण्डित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे। यशायाह-53ः4”
“मुझ पर दया करो और मैं तुमपर दया करूँगा। मुझे मेरे हाथ दो और मैं तुम्हें शान्ति प्रदान करूँगा। - फा. सिरिल को दिव्य दर्शन”
मनन-चिन्तन: ख्रीस्त दया और अनुकम्पा के प्रतीक हैं। उन्होंने अंधों को दृष्टिदान, बहरों को सुनने की शक्ति और अपदूतों को निकाला। उन्होंने भूखों की भूख मिटायी। काना नगर में निरे पानी को दाखरस में बदला जो उनकी अनुकम्पा के फल हैं। ख्रीस्त की वही दया और अनुकम्पा बालक येसु की प्रतिमा में मौजूद हैं।
प्राग में युद्ध छिड़ने पर कर्मेलाइट मठ ध्वस्त हो गया। युद्ध शान्त होने पर सन् 1631 ई0 में फा॰ सिरिल प्राग की ध्वस्त नगरी में पुनः आये और उन्होंने मठ के मलबे में बालक येसु की प्रतिमा पायी। प्रतिमा के हाथ टूट गये थे फिर भी फा॰ सिरिल ने बालक येसु के पास बड़ी भक्ति से प्रार्थना करने लगे। एक दिन फा॰ सिरिल ने एक आवाज़ सुनी - “मुझे मेरे हाथ दो और मैं तुम्हें शान्ति प्रदान करूँगा।” फा॰ सिरिल ने प्रतिमा के हाथों की मरम्मत कर दी। इससे फा॰ सिरिल को, उनके समुदाय को और मठ को बहुत सी आशिष और कृपाएँ मिली, और विशेषकर मठाधीश को पूरा स्वास्थ्य लाभ मिला।
प्रार्थना: हे नन्हें राजा! तू ईश्वर का रहस्य है और इतिहास में ईश्वर की उपस्थिति। तू ईश्वर की अनुकम्पा है जो हमारे लिए मनुष्य बन गया। तूने मरुभूमि में भूखों और थके-मांदे लोगों के प्रति, गूँगों, बहरों, अन्धों, लंगड़ों, रोगियों और मृतकों को पूरी अनुकम्पा दिखाई। बूढ़ों गरीबों, अनाथों और असहायों के प्रति गहरा प्रेम, दया और अनुकम्पा की कृपा हमें प्रदान कर। आमेन।
हे पिता हमारे..., प्रणाम मरिया..., पवित्र त्रित्व की महिमा...
नवाँ दिन: शान्ति
हमारे हृदय में बालक येसु: “मैं तुम्हारे लिए शान्ति छोड़ जाता हूँ। अपनी शान्ति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शान्ति जैसी नहीं है। योहन-14ः27”
“ईश्वर की शान्ति जो हमारी समझ से परे है, आप के हृदयों और विचारों को ईसा मसीह में सुरक्षित रखेगी। फिलीपियों-4ः7”
मनन-चिन्तन: बालक येसु की आशिष पाने के लिए हमें चेकोस्लोवाकिया के प्राग जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि ख्रीस्त ने हमारे हृदय में अपना निवास स्थान बना लिया है।
प्रार्थना: हे नन्हे राजा! तूने कहा है - तुम्हें शान्ति मिले। कृपया हमें शान्ति प्रदान कर। हमें हर प्रकार के दुश्मनों, घृणा, शैतान के प्रपंचों, बुरे विचारों और शत्रुतापूर्ण कामों को हमसे दूर रख जो हमें सच्ची शान्ति से वंचित करते हैं। तेरी शान्ति और आनन्द हमारे मन और हृदय में सदा बना रहे। आमेन।
हे पिता हमारे..., प्रणाम मरिया..., पवित्र त्रित्व की महिमा...
बालक येसु के आदर में पवित्र-मिस्सा/घरेलू आराधना (प्रत्येक दिन के अंत में)
निवेदन प्रार्थना (सामूहिक मिस्सा/घरेलू आराधना): हे स्वर्गिक पिता ईश्वर, हम तेरे वचनों को अपने बीच साकार पाकर आपार हर्ष और शान्ति का अनुभव कर रहे हैं। बेतलेहेम में एक निर्बोध बालक के रूप में जन्म लेकर हमारे बालक येसु ने सारे संसार को प्रकाशित किया और हरेक मानव के हृदय को प्यार से भर दिया है। ऐसी कृपा प्रदान कर कि उनकी भक्ति और महिमा के द्वारा हम सभी में मुक्ति और अनन्त खुशी की सच्ची आशा जागृत हो जाए। हमारे प्रभु और तेरे पुत्र बालक येसु ख्रीस्त के द्वारा, जो ईश्वर होकर तेरे तथा पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीते रहते और राज्य करते हैं। आमेन।
अर्पण-प्रार्थना (सामूहिक मिस्सा): हे सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर, हम विश्वास करते हैं कि जो कुछ भी हम बालक येसु का नाम लेकर तुझसे मांगेंगे वह हमे अवश्य मिलेगा, क्योंकि स्वयं तेरे पुत्र ने प्रेमपूर्वक हमलोगों से ऐसी प्रतिज्ञा की है। कृपया ये दान बालक येसु के नाम पर ग्रहण कर जो युगानुयुग जीते रहते और राज्य करते हैं। आमेन।
अर्पण-प्रार्थना (घरेलू अराधना): हे सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर, हम विश्वास करते हैं कि जो कुछ भी हम बालक येसु का नाम लेकर तुझसे मांगेंगे वह हमे अवश्य मिलेगा, क्योंकि स्वयं तेरे पुत्र ने प्रेमपूर्वक हमलोगों से ऐसी प्रतिज्ञा की है। कृपया हमारे परिवार को अपना निवास बना ताकि तेरी शान्ति हमारे हृदयों में सदा विराजमान रहे और तेरे प्रति हमारे परिवार के समर्पण का यह दान बालक येसु के नाम पर ग्रहण कर जो युगानुयुग जीते रहते और राज्य करते हैं। आमेन।
प्रसाद-भजन (सामूहिक मिस्सा): हे प्रभु, तेरी इच्छा है कि बालक येसु का नाम सुनकर सब लोग श्रद्धा-भाव से नतमस्तक हो जाएं और इनके द्वारा मुक्ति प्राप्त करें। हम पर ऐसी दया कर कि इस परम पावन संस्कार में हम अपने प्रभु बालक येसु का समादर करें। हमारी प्रार्थना पूरी कर, उन्हीं प्रभु ख्रीस्त के द्वारा। आमेन।
समारोही आर्शीवाद (सामूहिक मिस्सा):
(घरेलू आराधना के समय समारोही आर्शीवाद प्रार्थना के अधोरेखित पदो के स्थान पर कोष्ठक में लिखे पदों को पढ़ा जाना चाहिए)
ईश्वर ने बालक येसु के प्रतापमय जन्म से विश्व को ज्योतिर्मय बना दिया है। वही समस्त कल्याण का स्रोत ईश्वर आपलोगों (हमलोगों) से दुर्गुणों का अंधकार दूर करें और आपलोगों (हमलोगों) का हृदय-मंदिर सद्गुणों की ज्योति से आलोकित कर दे। आमेन।
हमारे बालक येसु का सुखमय संदेश आपलोगों का (हमारा) तन-मन आनंद से भर दे और आपलोगों को (हमें) अपने शुभ संदेश का वाहक बनाने की कृपा करें। आमेन।
ईश्वर का आत्मा पृथ्वी को स्वर्ग से संयुक्त कर आपलोगों को (हमें) शान्ति और सद्भावना प्रदान करे और स्वर्गीय कलीसिया के सहभागी बना दे। आमेन।
सर्वशक्तिमान ईश्वर, पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा का आर्शीवाद आपलोगों पर (हमपर) उतरे और सदा बना रहे। आमेन।
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