प्रिय भाइयों और बहनों, क्या हम वाकई पाप से जंग करते हैं? इसका जवाब जानने के लिए आइये थोड़ा मंथन करें| अपने जीवन में हमने कई बार "पाप" शब्द को सुना है और अक्सर अपने बोलचाल में इसे इस्तेमाल भी करते हैं| हम किसी किसी को तो पापी तक कह देते हैं| यहाँ एक सवाल उठता है कि पाप आखिर है क्या? सीधे शब्दों में इसका उत्तर तो यही है कि परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध किया गया कार्य ही पाप कहलाता है|
अब यदि हम अपने जीवन पर गौर करें तो हम पाते हैं कि कई बार हम जानबूझ कर ऐसा करते हैं और कई बार अनजाने में| पर हमें ग्लानि दोनों ही स्थितियों में होती है| हमारी ग्लानि हमारी पाप के विरुद्ध जंग का सबूत है| पाप से हमारी जंग को विस्तार से समझने के लिए हमें पहले पाप की प्रकृति को समझना होगा| मैं इसे एक छोटी कहानी के द्वारा समझाऊंगा|
एक छोटी लड़की ने उस दिन रो-धोकर आसमान सर पर उठा रखा था| घर वाले भी बहुत परेशान थे| जो बच्ची हमेशा हंसती-खिलखिलाती थी वही आज रो रही थी और किसी की सुनना नहीं चाह रही थी| वजह सिर्फ इतनी थी कि उस छोटी बच्ची की खिड़की पर आकर चहचहाने वाली छोटी चिड़िया आज नहीं आई थी| घर वालों ने काफी मशक्कत के बाद उस बच्ची को मनाया और स्कूल के लिए तैयार किया| बच्ची स्कूल चली गयी और घर वाले अपने काम में मशगूल हो गए| घंटे भर बाद जब बच्ची की माँ घर के बगीचे में गयी तो अनायास ही उसका ध्यान एक लता की ओर गया| लता काफी घनी और सुंदर थी| यूँ तो वह लता उनके बगीचे में काफी समय से थी पर आज वो लता उस बच्ची की माँ को कुछ ख़ास लग रही थी| माँ जब पास गयी तो अचानक उसकी नजर लता में लिपटी चिड़िया पर गयी| ये वही चिड़िया थी जिसके लिए थोड़ी देर पहले इतना रोना गाना हुआ था| चिड़िया लता में बुरी तरह उलझकर मर चुकी थी| माँ सोचने लगी कि क्या यह लता भी कातिल हो सकती है? यह चिड़िया जरुर छाँव की तलाश में यहाँ आई होगी और लता में उलझ गयी होगी| जीवन के लिए संघर्ष हुआ होगा और अंत में चिड़िया मर गयी होगी| लता ने उसका जीवन समाप्त कर दिया|
पाप भी उसी लता के समान है जो आकर्षक, आरामदायक और लुभावना लगता है और हम इसके चंगुल में फंस जाते हैं| यदि समय रहते हम इसके चंगुल से नहीं निकले तो हमारा पतन निश्चित ही है| अपनी कमजोरियों के कारण पाप में फंसना और फिर उससे बचने और बाहर निकलने की जंग ही हमारी पाप के विरुद्ध जंग है|
पाप के साथ हमारी जंग चलती रहती है| हम जान-बूझ कर पाप में पड़ना नहीं चाहते हैं पर फिर भी हम पाप में पड़ते हैं| मैंने निजी तौर पर यह अनुभव किया है कि जो चीज हमारे लिए नुकसानदेह होती है वह हमें सहर्ष ही अपनी ओर आकर्षित करती है| एक शराबी यह जानता है कि शराब नुकसानदेह है पर वह उसे नहीं छोड़ पाता है और जितना उसे नुकसान होता है उतना ही वो शराब में डूबता जाता है| धुम्रपान करने वालों का भी यही हाल है| आप यदि बागवानी करते हैं तो आप शायद यह महसूस करेंगे कि किसी पेड़ की शाखाओं को जिस ओर बढ़ने से रोकने के लिए आप काटते हैं, पेड़ उसी ओर ज्यादा शाखाएं फेंकता है| आये दिन समाचारपत्रों में हेडफोन के नुकसान को बताया जा रहा है और साथ ही लोगों की इसके प्रति लालसा बढ़ती जा रही है|
कभी-कभी जब मैं खाली होता हूँ तो इसपर सोचता हूँ और यह पाता हूँ कि जब हमें किसी चीज के नुकसान बताये जाते हैं तो हमारी यह इच्छा होती है कि हम उस चीज को और जानें| इसके पीछे हमारी मंशा यही होती है कि “जितना मैं उस चीज के बारे में जानूंगा उतना ही उससे दूर रहूँगा” पर अंततः हम ऐसा करने में असफल रहते हैं| उस चीज के बारे में जानने के क्रम में हम उसके प्रति आकर्षित होते हैं और धीरे-धीरे उसे अपनाने लगते हैं और हमें पता भी नहीं चलता है| जब तक हम समझ पाते हैं, वह चीज हमें अपने वश में कर लेती है| आपको पता ही होगा कि समुद्र में भिन्न-भिन्न प्रकार की मछलियाँ होती हैं| इन्ही मछलियों में से एक एंकर फिश (शायद इसका यही नाम है) भी है जिसके सर पर रौशनी उत्पन्न करने वाली बल्बनुमा संरचना होती है| यह मछली स्वयं अँधेरे हिस्से में छिपी होती है और अपने इस संरचना से प्रकाश करती है| अन्य मछलियाँ इस प्रकाश की ओर खिंची चली आती हैं और अंततः शिकार हो जाती हैं| पाप भी ऐसा ही होता है| यह हमारे मन में अपने प्रति रूचि जगा देता है और जबतक हम इसके असली मंसूबे को भांप पाते हैं, हम स्वयं शिकार हो जाते हैं| हमारा पतन हो जाता है जो कि हर स्थितियों में आत्मिक तो होता ही है क्योंकि यह हमें परमेश्वर से दूर करता है पर कई बार यह पतन भौतिक भी होता है और हमारी सामाजिक साख पर बट्टा लगा देता है|
आखिर हम शिकार क्यों होते हैं? हमारी अंतहीन शारीरिक अभिलाषाएं और संसारिकता के प्रति हमारा अत्यधिक झुकाव ही हमें पाप के फंदे में देर-सवेर धकेल देता है और तब वहां से निकलने की जंग शुरू होती है| कभी हमारा पलड़ा भरी होता है तो कभी पाप का| हम अक्सर खुद को परमेश्वर की आज्ञाओं के पालन में दृढ़ नहीं बना पाते हैं और हमारी इसी कमजोरी का फ़ायदा पाप उठाता है|
क्या इसका कोई निदान है?
यक़ीनन इस समस्या का निदान है| क्या हम स्वयं पर काबू नहीं पा सकते हैं? जिम्नास्टिक कलाकार अपने शरीर पर काबू पाते हैं और वे इसे तैयार करते हैं विभिन्न करतबों के लिए| हमारा मन भी हमारे काबू में आ सकता है और इसे काबू में करती है हमारी आत्मा| हम केवल प्रार्थना के द्वारा ही अपनी आत्मा को मजबूत बना सकते हैं ताकि वह मन को भटकने से रोक सके| हमें प्रार्थना करते रहना चाहिए हर घड़ी, हर क्षण कि हम पाप की परीक्षा में न पड़ जाएँ| “जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो...” प्रभु येशु ने यही सिखाया है| आइये हम प्रभु से आवश्यक मदद मांगते हुए ऐसा करने की भरपूर कोशिश करें|
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