क्या आप अपने रोज के दिनचर्या को देखते हैं? सुबह उठना, स्कूल/ऑफिस/ट्यूशन आदि जाने के लिए तैयारी करना| जरा सी चूक और हम लेट हो गए| हमारी दिनचर्या को अगर हम ध्यान से देखें तो हम यह पाते हैं कि हम कितने व्यस्त हैं| हर दिन एक नयी दौड़, एक नयी जद्दोजहद और एक नयी चिंता| आदमी सारा दिन मशीन की तरह काम करता रहता है और शाम को थक-हार कर घर लौटता है, आराम करता है और फिर अगला दिन, फिर एक नयी दौड़ फिर वही सारा घटनाक्रम| ये तो हुई हमारी दिनचर्या| अब आइये जरा नजर डालते हैं दुनिया की मौजूदा हालत पर| दुनिया खुद भी दौड़ रही है-विकास की दौड़ और दुनिया की इसी दौड़ के साथ कदम मिलाने के लिए हम भी दौड़ते हैं|
क्या हमारी दिनचर्या दुनिया से कदमताल मिलाने भर की दौड़ मात्र है? नहीं यह इससे कहीं अधिक है| हमारी यह सांसारिक दौड़ हमें कई प्रकार की चिंताओं बोझों और परेशानियों में डाल देती है| हम में से हर कोई आज किसी न किसी बोझ से दबा हुआ है| कोई ऑफिस के टारगेट पूरा करने के बोझ से तो कोई समय पर सिलेबस पूरा करने के बोझ से| किसी को इन्क्रीमेंट की चिंता खाए जा रही है तो कोई मार्क्स के लिए परेशान है| कोई यह सोच कर परेशान है कि कल सुबह क्या बनायें और बच्चों को कैसे समय पर स्कूल भेजें| दूधवाले, पेपरवाले, सब्जीवाले का पैसा, बिजली का बिल, घर की छोटी-मोती जरूरतें, इन सब के बोझ से आदमी दबा हुआ है|
यह एक अकाट्य सत्य है कि आदमी चाहे वो अमीर हो या गरीब, बड़ा हो या छोटा, वाइट कॉलर जॉब करता हो या दैनिक मजदूरी पर काम करता हो, आज किसी न किसी शारीरिक, मानसिक या आत्मिक परेशानी से घिरा हुआ है| वह दुखी है, चिंताग्रस्त है, तनावग्रस्त है, बीमार है, श्राप [निराधार नकारात्मक सोच या विचार] से ग्रसित है| यक़ीनन आप भी जो इस समय यह आलेख पढ़ रहे हैं, इन समस्याओं से ग्रसित होंगे और इस आलेख को पढ़ने के दौरान आपके जेहन में अपनी समस्याओं की तस्वीर दौड़ रही होगी| इन समस्याओं के कारण आपका जीवन निराशा में बीत रहा होगा| यह निराशा आपको भीतर ही भीतर घुटने पर मजबूर कर देती है और आप इतने टूट जाते हैं कि आत्महत्या का रास्ता भी आपको आसान लगने लगता है
यह एक अकाट्य सत्य है कि आदमी चाहे वो अमीर हो या गरीब, बड़ा हो या छोटा, वाइट कॉलर जॉब करता हो या दैनिक मजदूरी पर काम करता हो, आज किसी न किसी शारीरिक, मानसिक या आत्मिक परेशानी से घिरा हुआ है| वह दुखी है, चिंताग्रस्त है, तनावग्रस्त है, बीमार है, श्राप [निराधार नकारात्मक सोच या विचार] से ग्रसित है| यक़ीनन आप भी जो इस समय यह आलेख पढ़ रहे हैं, इन समस्याओं से ग्रसित होंगे और इस आलेख को पढ़ने के दौरान आपके जेहन में अपनी समस्याओं की तस्वीर दौड़ रही होगी| इन समस्याओं के कारण आपका जीवन निराशा में बीत रहा होगा| यह निराशा आपको भीतर ही भीतर घुटने पर मजबूर कर देती है और आप इतने टूट जाते हैं कि आत्महत्या का रास्ता भी आपको आसान लगने लगता है
आपने इन बोझों से निकलने के लिए काफी प्रयास किया होगा| आपने शांति पाने के लिए, अपनी खुशियाँ पाने के लिए काफी धन लगाया होगा| आप लौकिक-अलौकिक, हर प्रकार की शक्तियों की शरण में गए होंगे| आपको लगता होगा कि आपने सब कुछ आजमा लिया है| क्या आप प्राप्त परिणामों से संतुष्ट हैं? यदि हाँ तो यह अच्छी बात है और यदि नहीं तो मेरा दावा है कि आपने "सब कुछ" नहीं आजमाया होगा| सवाल यह है कि आप क्या भूल रहे हैं?
"हे थके-माँदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा - मत्ती 11-28"
आखिर यह कौन शख्स है जो इतने अधिकार के साथ सब बोझ से दबे लोगों को अपनी और बुलाता है और विश्राम देने का वादा करता है? आइये मैं आपको उनसे मिलवाता हूँ जिन्होंने यह कहा है| ये शख्स कोई और नहीं बल्कि हमारे प्रभु येशु ख्रीस्त हैं| हाँ मेरे भाइयों और बहनों, प्रभु येशु ख्रीस्त ही हम सभी सांसारिक चिंताओं, दुखों, तकलीफों, शारीरिक और मानसिक रोगों और हमारी नकारात्मक सोच और विचारों [जिन्हें हम किसी का श्राप मानते हैं] के बोझ से दबे लोगों को अपने पास बुलाते हैं| वे इस धरती पर आये ताकि उनके द्वारा हम चंगे और बोझमुक्त हो सकें, हम पाप और दुःख-तकलीफों के बंधन से मुक्त हो सकें| वे ईश्वर होते हुए भी हमारे लिए हम जैसे मानव बने ताकि हम उनके प्रेम और महिमा को करीब से जान सकें और बोझ से मुक्त हो सकें|
बाइबल बताती है कि प्रभु येशु ख्रीस्त जहाँ कहीं भी गए लोगों की भीड़ उन्हें घेर लेती थी| वे सभी लोग चंगाई पाते थे, अपने बोझ से मुक्त होते थे और उन्हें शांति मिलती थी| एक स्त्री जो बारह वर्षों से बीमार थी और उसने इन वर्षों में स्वस्थ होने के लिए काफी धन व्यर्थ किया था पर उसे निराशा ही हाथ लगी थी, प्रभु येशु के द्वारा उसे चंगाई मिली क्योंकि उसने विश्वास किया था कि यदि वह केवल प्रभु येशु के वस्त्र को ही छू ले तो वह स्वस्थ हो जाएगी|
बाइबल बताती है कि प्रभु येशु ख्रीस्त जहाँ कहीं भी गए लोगों की भीड़ उन्हें घेर लेती थी| वे सभी लोग चंगाई पाते थे, अपने बोझ से मुक्त होते थे और उन्हें शांति मिलती थी| एक स्त्री जो बारह वर्षों से बीमार थी और उसने इन वर्षों में स्वस्थ होने के लिए काफी धन व्यर्थ किया था पर उसे निराशा ही हाथ लगी थी, प्रभु येशु के द्वारा उसे चंगाई मिली क्योंकि उसने विश्वास किया था कि यदि वह केवल प्रभु येशु के वस्त्र को ही छू ले तो वह स्वस्थ हो जाएगी|
प्रभु येशु ख्रीस्त हम सभों को अपने पास बुलाते हैं और कहते हैं कि "देख, मैं [ह्रदय के] द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर [ह्रदय का] द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ [चंगाई और बोझमुक्त करने वाला] भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ| - प्रकाशितवाक्य 3:20"
यह हम पर है कि हम उनके लिए अपने ह्रदय के द्वार खोलकर उन्हें अपनाते हैं या नहीं| यदि हम उन्हें अपनाएंगे तो उनके द्वारा हमें अपने बोझों से मुक्ति मिलेगी और साथ ही हमें आत्मिक और शारीरिक चंगाई प्राप्त होगी| यह हमपर है कि हम क्या चुनते हैं... "विश्राम प्रभु येशु ख्रीस्त में या चिंता, दुःख, बोझ संसारिकता में"
यदि आप फेसबुक पर हैं तो हमारे फेसबुक पेज से जरुर जुड़ें| इस लिकं का प्रयोग करें :
http://tinyurl.com/olcdpms
यह हम पर है कि हम उनके लिए अपने ह्रदय के द्वार खोलकर उन्हें अपनाते हैं या नहीं| यदि हम उन्हें अपनाएंगे तो उनके द्वारा हमें अपने बोझों से मुक्ति मिलेगी और साथ ही हमें आत्मिक और शारीरिक चंगाई प्राप्त होगी| यह हमपर है कि हम क्या चुनते हैं... "विश्राम प्रभु येशु ख्रीस्त में या चिंता, दुःख, बोझ संसारिकता में"
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